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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मां हीराबेन का 100 वर्ष की उम्र में आज तड़के हुआ निधन…… देश में शोक की लहर….. प्रधानमंत्री अमदाबाद रवाना…….

नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मां हीराबा हीराबेन मोदी नहीं रही। शुक्रवार सुबह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की आधिकारिक ट्विटर हैंडल के जरिए यह जानकारी दी गई। पोस्ट में लिखा गया, शानदार शताब्दी का ईश्वर चरणों में विराम..

मां मैंने हमेशा उस त्रिमूर्ति की अनुभूति की है, जिसमें एक तपस्वी की यात्रा, निष्काम कर्मयोगी का प्रतीक और मूल्यों के प्रति प्रतिबद्ध जीवन समाहित रहा है। मैं जब उनसे 100 वें जन्मदिन पर मिला तो उन्होंने एक बात कही थी, जो हमेशा याद रहती है कि काम करो बुद्धि से और जीवन जियो शुद्धि से।

जानकारी के अनुसार, 100 वर्षीय हीराबा का आज सुबह निधन हो गया। यूएन मेहता अस्पताल के एक बयान में कहा गया है, ‘हीराबा मोदी का निधन शुक्रवार तड़के (30 दिसंबर) 3.30 बजे (सुबह) इलाज के दौरान हुआ। पीएम मोदी अहदाबाद के लिए रवाना हो चुके हैं।
गौरतलब है कि अभी तक मिली जानकारी के अनुसार, पीएम मोदी के आज के कार्यक्रम को रद नहीं किया गया है। हीराबा के निधन पर देश के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने शोक जताया है। इसके अलावा, हीराबेन मोदी के निधन पर गुजरात के मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल ने भी दुख जताया है।
कुछ दिनों से बीमार चल रहीं थी हीराबा।
बता दें कि हीराबेन मोदी (100 वर्ष) की बुधवार सुबह तबियत खराब हो गई। उन्हें तत्काल अहमदाबाद के सरकारी अस्पताल यूएन मेहता में भर्ती कराया गया। इसके बाद प्रधानमंत्री मोदी दोपहर दिल्ली से सीधे अहमदाबाद के यूएन मेहता अस्पताल पहुंचे। वह यहां माताजी के पास डेढ़ घंटा रुककर हालचाल जानने व उनके स्वास्थ्य में सुधार होने के बाद शाम को दिल्ली लौट आए थे।

बता दें कि हीराबा ने इस साल जून में ही अपना 100वां जन्मदिन मनाया था। उनके 100वें जन्मदिन पर पीएम मोदी ने एक विशेष पत्र भी लिखा था। संघर्षों को चुनौती देती रहीं हीराबा हीराबा का जन्म पालनपुर में हुआ था, शादी के बाद वह वडनगर शिफ्ट हो गई थीं। हीराबा की उम्र महज 15-16 साल थी, जब उनकी शादी हुई थी। घर की आर्थिक और पारिवारिक स्थिति कमजोर होने के चलते उन्हें पढ़ने का मौका नहीं मिला।

लेकिन वह अपने बच्चों को शिक्षा देने के लिए दूसरे के घरों में भी काम करने के लिए तैयार हो गईं। उन्होंने फीस भरने के लिए कभी किसी से उधार पैसे नहीं लिए। हीराबा चाहती थीं कि उनके सभी बच्चे पढ़ लिखकर शिक्षित बने।

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