लालकुआं। पूर्व केंद्रीय राज्य मंत्री व नैनीताल उधम सिंह नगर संसदीय क्षेत्र से सांसद श्री अजय भट्ट ने मुख्यमंत्री श्री पुष्कर सिंह धामी को पत्र लिखते हुए वनाधिकार अधिनियम 2006 (संशोधन 2012) के अन्तर्गत बिंदुखत्ता सहित पूर्वी तराई के प्रभावित पशुपालक परिवारों को भूमि का मालिकाना हक एवं अन्य बुनियादी सुविधाएं प्रदान किये जाने मांग की है।
श्री भट्ट ने कहा है कि जनपद नैनीताल के अन्तर्गत तराई पूर्वी क्षेत्र के विभिन्न खत्तों जैसे- बिंदुखत्ता, रैखाल खत्ता, तुनीखाल (होराई) खत्ता, डौली खत्ता, खमारी खत्ता, बौड़ खत्ता, हंसपुर खत्ता, जौलासाल खत्ता एवं कड़ापानी खत्ता में कई दशकों से रह रहे पशुपालक परिवारों को अभी तक वनाधिकार अधिनियम 2006 (संशोधित 2012) के अन्तर्गत भूमि का मालिकाना हक प्राप्त नहीं हुआ है। समस्त क्षेत्रवासियों द्वारा अवगत कराया है कि सैकड़ों वर्षों से वन भूमि पर बसे ग्रामवासी सरकारी योजनाओं एवं अन्य बुनयादी सुविधाओं से वंचित लम्बे समय से वनाधिकार कानून (एफ०आर०ए०) के तहत राजस्व ग्राम घोषित होने की प्रतीक्षा कर रहे है। मैंनें इस प्रकरण को लोगो की स्थिति को दृष्टिगत रखते हुए संसद में भी उठाया था।
आपके संज्ञान में यह भी लाना चाहता हूं कि इन खत्तों के सभी नागरिक लोकसभा एवं विधानसभा में मतदान करते है, परन्तु ग्रामसभा, क्षेत्र पंचायत एवं जिला पंचायतों में इन्हें चुनाव का अधिकार नहीं है, जो लोकतंत्र की इकाई पंचायतों के चुनावों के लिए, वन-कानूनों के कारण नागरिकों के, मौलिक अधिकारों का खुला उल्लंघन है।
श्री भट्ट ने अपने पत्र में कहा है कि उपरोक्त खत्तों के निवासियों ने 1883 से पूर्व जंगलात क्षेत्र में अपने पशुओं के साथ स्थायी रूप से निवास करना प्रारम्भ किया था और आज भी वे वहीं पर जीवन-यापन कर कर रहे हैं।
उपरोक्त खत्तों/गोठों/वन गांवों समेत उत्तराखण्ड के ऐसे खत्तों एवं वनों में पीढ़ियों से रहने वाले गोठों एवं वन खत्तों के भारतीय नागरिकों को लोकतंत्र की सीढ़ी पंचायत चुनावों से बन कानूनों के कारण दूर रखा गया है। बिन्दुखत्ता भी इसका जीता जागता उदाहरण है, जहां पर देश की रक्षा के लिए शत्रुओं को मुंहतोड़ जवाब देने वाले सेवानिवृत्त सैनिकों समेत, लगभग 50 हजार जनता के रहने का अनुमान है।
यहां के नागरिक लोकसभा एवं विधानसभाओं में मतदान तो देते है, परन्तु पंचायत चुनावों में मतदान से वंचित रहते है, इसी कारण वन क्षेत्रों में ग्राम सभाओं, क्षेत्र पंचायतों एंव जिला पंचायतों को मिलने वाली जिला योजनाओं, केन्द्रीय योजनाओं, राज्य योजनाओं, सड़क, बिजली, पानी, शिक्षा, बैंक, पोस्ट ऑफिस, स्वास्थ्य, प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना, पेंशन (वृद्धावस्था) एवं आयुष्मान कॉर्ड, जल जीवन मिशन जैसी मूलभूत सुविधाओं के लाभ से वंचित कर दिया जाता है, जबकि ये सभी भारत के नागरिक है।
यह भी स्मरणीय है कि ये सभी स्थान जंगलों के बीच में हैं, जहां बाघ, चीता, हाथी आदि जंगली जानवरों का भयंकर जतरा है।
श्री भट्ट ने पत्र में लिखा है कि उन्होंने स्वयं इन स्थानों में जाकर देखा कि प्राईमरी विद्यालय घासफूस की झोपड़ी में चल रहे हैं और इसके बाद की पढ़ाई जंगलों से बाहर नहीं जा पाने के कारण समाप्त हो जाती है. ऐसी स्थिति में मूल अधिकारों से वंचित लोगों को उनके शिक्षा जैसे मूल अधिकार जो संविधान के अनुच्छेद 21 ए के द्वारा प्रदत्त किया गया है, से वंचित करना कतई न्यायोचित नहीं है, बल्कि मूल अधिकारों का उल्लंघन है।
इसी प्रकार मतदान के कानूनी अधिकार जो संविधान के अनुच्छेद 326 द्वारा प्रदत्त किया गया है, का भी खुला उल्लंघन है, क्योंकि विधानसभाओं/लोकसभाओं में उपरोक्त वनवासियों को मतदान का अधिकार तो है, परन्तु पंचायती चुनाव में इन्हीं वनवासियों को मतदान देने का अधिकार नहीं है, जो संविधान की मूल भावनाओं के विपरीत है।
श्री भट्ट ने आग्रह किया है कि ऐसी स्थिति में वन कानूनों की आज के परिप्रेक्ष्य में पुनः समीक्षा की जानी आवश्यक प्रतीत होती है। वन खत्तों मे रहे परिवारों द्वारा सम्बन्धित विभागों के समक्ष आवेदन प्रस्तुत किये गए, लेकिन प्रक्रियात्मक अड़चनों के कारण उन्हें अब तक उनके अधिकार नहीं मिल सकें हैं।
वन खत्तों में रह रहे परिवारों ने वन विभाग द्वारा परिवारों का नाम चारागाह रजिस्टर में दर्ज किये जाने, भूमि पर मालिकाना हक प्रदान कर खत्तों को “राजस्व ग्राम घोषित किये जाने, प्रत्येक खत्तों में सोलर संचालित आर०टी०जन की व्यवस्था करने, प्रत्येक खत्तों में विद्युत व्यवस्था करने, सड़कों का निर्माण करने एवं खमारी खत्ता, बौढ़खत्ता में पूर्व से झोपड़ी में चले आ रहे प्राईमरी स्कूल का नव निर्माण कराते हुए भवन निर्माण किये जाने हेतु मांग की है, जो जनहित में अति आवश्यक है।
श्री भट्ट ने कहा है कि जनभावनाओं के अनुरूप उपरोक्त खत्तों को राजस्व ग्राम घोषित किये जाने हेतु उचित कार्यवाही करने का कष्ट करेंगे ताकि इन सभी परिवारों को सरकारी योजनाएं एवं अन्य विभिन्न प्रकार की योजनाओं का लाभ मिल सकें तथा उनके पंचायतों में मतदान देने के मूल अधिकारों को बहाल किया जा सकें।
और मुख्यमंत्री से अनुरोध किया है कि संलग्न पत्र के परिप्रेक्ष्य में समीक्षा हेतु एक कमेटी बनाकर, पंचायतों के चुनावों में खत्तों/गोठों/बन गांवों को लोकसभा एवं विधानसभाओं की तरह से मतदान कराने के लिए संविधान के अनुरूप निर्णय किया जा सकें।
