उत्तराखण्ड

आध्यात्मिक जगत के महान संत स्वामी बालकृष्ण जी महाराज की जयंती पर आज हो रहे अष्टादश भुजा महालक्ष्मी मंदिर में विविध अनुष्ठान…… पढ़ें यती महाराज के जीवन के स्मरणीय पलों की भावविभोर कर देने वाली जानकारी……

अध्यात्म जगत की महान विभूति थे युग संत महामंडलेश्वर स्वामी बालकृष्ण यति जी महाराज…..
आज धूमधाम से मनाई जा रही हैं 108 वीं पावन जयंती…….. पढ़ें यति महाराज के जीवन के स्मरणीय पलों की भाव विभोर कर देने वाली जानकारी…..

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ज्ञान भक्ति व कर्म योग को पूरी तरह से अपने जीवन में आत्मसात करने वाले जगत जननी जगदंबा के प्राणों से अनुप्राणित महादेव के परम भक्त पवाहारी महामंडलेश्वर संत स्वामी बालकृष्ण जी महाराज देव संस्कृति तथा सनातन धर्म परंपरा के महानायक थे, संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय वाराणसी से वेदांताचार्य की उपाधि प्राप्त युग संत स्वामी बालकृष्ण यति जी महाराज ने बाल्यावस्था में ही सन्यास धारण कर लोक कल्याण का मार्ग चुना, देवभूमि उत्तराखंड के बागेश्वर जनपद के जोशी गांव में संत शिरोमणि स्वामी बालकृष्ण यति जी महाराज का 1915 में अवतरण हुआ, बाल्यावस्था में ही सन्यास धारण कर चुके बालकृष्ण यति जी महाराज ने हिमालय क्षेत्र में तथा नर्मदा तट पर कठिन साधना की, उन्होंने 28 वर्ष तक केवल फलाहार कर महान साधना तपस्या की, बाद में उन्होंने फल का भी त्याग कर दिया, जिसके चलते उन्हें पवाहारी संत कहा जाने लगा। स्वामी बालकृष्ण यति जी महाराज ने सन्यास धारण करने के पश्चात भी अपनी शिक्षा जारी रखी, तथा प्रारंभिक शिक्षा देवभूमि उत्तराखंड के बागेश्वर से लेने के बाद उन्होंने काशी उज्जैन आदि क्षेत्रों से उच्च शिक्षा प्राप्त की। जिसके बाद संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय द्वारा उन्हें वेदांताचार्य की उपाधि से अलंकृत किया गया। अपनी जीवन यात्रा में उन्होंने कई मंदिरों की स्थापना की, तथा कई जगह गौशाला बनाई, उन्होंने कई शतचंडी महायज्ञ, सहस्त्र चंडी महायज्ञ के अलावा अनेकों बड़े धार्मिक आयोजन कराए, वेद उपनिषद गीता आदि ग्रंथों का गहन अध्ययन करने के बाद समाज को धर्म एवं सत्कर्म के प्रति जागरूक किया, साथ ही भारतीय संस्कृति के मूल तत्व से तथा सनातन धर्म परंपरा के माध्यम से भी जन-जन को परिचित कराया। सिद्ध संत तपोनिष्ठ महादेव गिरी जी का उन्हें सानिध्य मिला, अपने गुरु के सानिध्य में प्रारंभिक शिक्षा ग्रहण करने के बाद उन्होंने कैलाश मानसरोवर के अलावा तमाम दुर्गम तीर्थों की यात्राएं की, इसके बाद भी उन्होंने अपनी पढ़ने की जिज्ञासा को शांत नहीं होने दिया और अवंतिका मिर्जापुर काशी से उच्च शिक्षा प्राप्त की। इनकी विलक्षण प्रतिभा को देखते हुए स्वामी विश्वनाथ यति द्वारा इन्हें सिद्ध शक्तिपीठ हथियाराम मठ में बुलाया, हथियाराम मठ उत्तर प्रदेश के गाजीपुर में स्थित है, और यह लगभग 700 वर्ष से भी ज्यादा प्राचीन शक्ति स्थल है, जो संत महात्माओं की तपस्थली के रूप में जाना जाता है, इस स्थान पर जगत जननी जगदंबा के नौवें स्वरूप माता सिद्धिदात्री का मंदिर है, इस मंदिर की विशेषता यह है कि इस मंदिर के दर्शन प्राप्त कर लकवा से पीड़ित मरीज रोग मुक्त हो जाता है, बाल कृष्ण यति जी महाराज जी द्वारा इस स्थान पर कैलाश आश्रम का निर्माण करवाया, अतिथि भवन गौशाला स्थापित करने के अलावा यहां कन्या महाविद्यालय की नींव रखी। इसके अलावा एक औषधालय का भी उनके द्वारा निर्माण कराया गया। जिसे बाद में सरकार ने राजकीय औषधालय के रूप में मान्यता प्रदान दी, यहां उन्होंने शंकर वन में अपने लिए साधना कुटी का निर्माण किया, धर्म एवं अध्यात्म के प्रचार प्रसार के अलावा उन्होंने गुरुकुल परंपरा को भी आगे बढ़ाया, तथा अपने गुरु महामंडलेश्वर स्वामी विश्वनाथ जी द्वारा स्थापित संस्कृत पाठशाला को विराट रूप देकर उसे भी विश्वनाथ गुरुकुल संस्कृत महाविद्यालय वाराणसी के नाम पर विख्यात किया। इसी परिसर में उन्होंने बच्चों को आदर्श आश्रम पद्धति एवं आधुनिक शिक्षा का समन्वय करते हुए आवासीय इंटर कॉलेज बनाया, वर्तमान में उनके द्वारा बनाए गए भारतीय संस्कृति शिक्षा संस्थान नाम के ट्रस्ट द्वारा उक्त इंटर कॉलेज की व्यवस्थाएं देखी जा रही है, सबसे बड़ी विशेषता इस विद्यालय की यह है कि यहां शिक्षा के साथ-साथ सहस्त्र चंडी आदि अनुष्ठान कराए जाते हैं। जिसमें अध्ययनरत छात्र भी हिस्सा लेते हैं, इसके अलावा उनके द्वारा ज्वालापुर हरिद्वार में शंकर आश्रम तथा शिवालय बनाया गया, जहां अनेक संत महात्मा श्रद्धालुओं का आवागमन बना रहता है, जिनके ठहरने, भोजन इत्यादि की व्यवस्था आश्रम द्वारा कराई जाती है।

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गाजीपुर उत्तर प्रदेश में उनके द्वारा स्थापित पवाहारी संत बालकृष्ण यति स्नातकोत्तर कन्या महाविद्यालय है, इसके अलावा हल्द्वानी के महादेव गिरी संस्कृत महाविद्यालय में भी उनका अतुलनीय योगदान रहा है, उन्होंने यहां हरि हरात्मक यज्ञ का आयोजन कराया जो अपने आप में अद्भुत अलौकिक और
अद्वितीय था, क्योंकि यह वह यज्ञ होता है जिसमें हरि अर्थात नारायण और हर अर्थात शिव दोनों का सम्मिलित पूजन एवं यज्ञ होता है, इसके माध्यम से उन्होंने संदेश दिया कि शिव और विष्णु में भेद नहीं करना चाहिए, क्योंकि दोनों एक ही है, स्वामी बालकृष्ण यति जी महाराज जी द्वारा वर्ष 2001 में हल्द्वानी स्थित अपने शिष्य के आवास में शत चंडी यज्ञ का आयोजन करवाया, इस दौरान उन्होंने कुमाऊं मंडल में अष्टादश भुजा महालक्ष्मी मंदिर बनाए जाने की इच्छा व्यक्त की, और उनकी इच्छा तुरंत साकार रूप लेती चली गई, और आज अष्टादश भुजा महालक्ष्मी मंदिर बेरीपड़ाव कुमाऊं का ही नहीं बल्कि उत्तर भारत का प्रमुख तीर्थ स्थल के रूप में विख्यात है, जिसे बाल कृष्ण यति धाम के नाम से भी जाना जाता है, ऐसे महान युग संत की 108 वीं पावन जयंती आज मनाई जा रही है सुबह 8 से 12 बजे तक शिवपूजन, सुंदरकांड, गुरु पूजा महोत्सव कार्यक्रम किए जा रहे हैं इसके बाद विशाल भंडारे का आयोजन किया जाएगा, अष्टादशभुजा महालक्ष्मी मंदिर में विराजमान महामंडलेश्वर सोमेश्वर यति जी महाराज ने क्षेत्रवासियों से प्रातः स्मरणीय परम वंदनीय ब्रह्मलीन पवाहारी संत बालकृष्ण यति जी महाराज की 108 वीं पावन जयंती पर पहुंच कर पुण्य के भागी बने ने का आह्वान किया है।

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