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सुप्रीम कोर्ट में वनभूलपुरा मामले की सुनवाई पर रेलवे और राज्य सरकार को न्यायालय ने दी यह नसीहत……………….. 12 सितंबर को होने वाली अगली सुनवाई में यह आ सकता है निर्णय………………..

हल्द्वानी के बहुचर्चित रेलवे, राज्य सरकार बनाम बनभूलपुरा प्रकरण में बुधवार को सुप्रीमकोर्ट में बेहद अहम सुनवाई हुई। करीब पौन घंटे बहस चली। 11 जनहित याचिकाओं पर जस्टिस उज्जवल भुयान, अरविंद कुमार तथा दीपांकर दत्ता की बैंच ने सुनवाई की। याचिकाकर्ताओं की ओर से वकीलों में दिग्गज अधिवक्ता सलमान खर्शीद, सिद्धार्थ लूथरा, कॉलिन गॉन्जालवेज ने पक्ष रखा।
पिछली सुनवाई 12 जुलाई को हुई थी जिसमें सर्वाेच्च न्यायालय ने राज्य सरकार व रेलवे से प्लान मांगा था। अगली सुनवाई अब 11 सितंबर को होगी।

सूत्रों के अनुसार आज हुई सुनवाई में सुप्रीमकोर्ट में राज्य सरकार तथा रेलवे ने अपना पक्ष रखा। रेलवे ने कहा कि उन्हें वंदे भारत ट्रेन के लिए जगह चाहिए। स्टेशन का भी विस्तार करना है। लेकिन तीनों जजों ने जब पूरा प्लान मांगा और रेलवे के इंजीनियर से इस बारे में ज्यादा डिटेल और रेलवे के दावे वाली ज़मीन के दस्तावेज़ मांगे तो रेलवे के इंजीनियर संतोषजनक दस्तावेज़ तथा फोटो कोर्ट में नहीं दिखा पाए।
रेलवे की ओर से कोर्ट में कहा गया कि उन्हें फिल्हाल थोड़ी जगह से अतिक्रमण हटाने दिया जाए। लेकिन कोर्ट ने कहा नहीं-नहीं पूरी योजना बताओ।
कोर्ट ने रेलवे, राज्य सरकार तथा केन्द्र सरकार से यह पूछा है कि कितनी ज़मीन चाहिए, किस खेत खसरा में कितने लोग प्रभावित होंगे और उनके विस्थापन का क्या प्लान है।सर्वाेच्च न्यायालय ने रेलवे से कहा कि आपको ज़मीन की ज़रत है तो जनहित याचिका का सहारा क्यों ले रहे हो जिसपर रेलवे की ओर से जवाब दिया गया कि स्थानीय एडमिनिस्ट्रेशन उनकी बात नहीं सुनता।
जानकारों की मानें तो आज की बहस इस पूरे मामले के लिए बेहद महत्वपूर्ण मानी जा रही है। अगली सुनवाई 11 सितंबर को है और वो इस सुनवाई से भी बेहद अहम हो सकती है। हो सकता है कि अगली सुनवाई पर इस पूरे मामले पर बड़ा फैसला भी आ सकता है।
उच्चतम न्यायालय द्वारा दी गई अपनी टिप्पणी में कहा गया है कि जो वहां रह रहे हैं वो भी इंसान हैं. वे दशकों से रह रहे हैं. अदालतें निर्दयी नहीं हो सकतीं. अदालतों को भी संतुलन बनाए रखने की जरूरत है. राज्य को भी कुछ करने की जरूरत है,

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कोर्ट ने कहा रेलवे ने अब तक कोई कार्रवाई नहीं की है. अगर आप लोगों को बेदखल करना चाहते हैं तो नोटिस जारी करें? जनहित याचिका के सहारे क्यों? इसके लिए जनहित याचिका का इस्तेमाल नहीं किया जा सकता. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हम रेलवे की बात को समझ रहे हैं, लेकिन इसमें बैलेंस करने की जरूरत है. हम बस ये जानना चाहते हैं कि पुनर्वास को लेकर क्या योजना है?

रेलवे को जमीनों की जानकारी नहीं

रेलवे ने रिकॉर्ड पर कहा है कि उन्हें अपनी जमीनों के बारे में जानकारी नहीं है. आगे बढ़ने का एक रास्ता है. हमें आगे बढ़ने का रास्ता खोजना होगा. SC ने कहा की पुनर्वास के लिए विकल्प तलाशने की जरूरत है. जस्टिस सूर्यकांत ने कहा आप क्या कर रहे हैं? कुछ नहीं करने की वजह से हमें आपके कलेक्टरों को जिम्मेदार क्यों नहीं ठहराना चाहिए।

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कोर्ट ने कहा,’अगर आप (कलेक्टर्स) वह जमीन का हिस्सा चाहते हैं तो पहले हमें बताएं कि आपको कितनी जमीन चाहिए और फिर आप पुनर्वास कैसे करेंगे? फॉरेस्ट एरिया को छोड़ कर किसी दुसरे लैंड को लेकर विकल्प को तलाशने की जरूरत है. सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि इस मामले में जल्द कार्रवाई की जरूरत है. वहां पर 4365 घर हैं, जिनमें 50 हजार लोग रह रहे हैं।

कोर्ट ने कहा,’सुनवाई के दौरान हमें कुछ वीडियो और फोटो दिए गए हैं, जिनसे पता चलता है कि कई परिवार तो सालों से वहां रह रहे हैं.’ कोर्ट ने उत्तराखंड सरकार और केंद्र सरकार को कहा कि वो जमीन की पहचान करें, जहां लोगों को शिफ्ट किया जा सके. इस मामले में केंद्र सरकार को नीतिगत निर्णय लेना चाहिए. उत्तराखंड के चीफ सेक्रेटरी और केंद्र सरकार के संबंधित विभाग के अधिकारी पुनर्वास योजना को लेकर आपस में बैठक करें.’

कोर्ट ने निर्देश दिया कि ये पुनर्वास योजना ऐसी हो, जिसमें सब सहमत हों. जो परिवार प्रभावित है उनकी तुरंत पहचान होनी चाहिए. चार हफ्तों के भीतर इस योजना पर काम हो जाना चाहिए. हम पांच हफ्ते बाद 11 सितंबर को मामले की सुनवाई करेंगे.

सुनवाई के दौरान ASG ऐश्वर्या भाटी ने कहा,’2023 में सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा दी थी. अब हम उस स्टे को हटाने की मांग कर रहे हैं. इसकी वजह से रेलवे स्टेशन में बहुत नुकसान हुआ है. कोर्ट ने पूछा कि रेलवे की अतिक्रमित जमीन से दाईं ओर नदी और रेलवे लाइन है. मान लीजिए आपको रेलवे लाइन को बहाल करना है और खतरा आसन्न है, तो आप क्या प्रस्ताव दे रहे हैं?

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जब वरिष्ठ डिवीजन इंजीनियर ने कहा कि मानसून से पहले हमने एक योजना बनाई थी तो कोर्ट ने पूछा कि क्या इस रेलवे लाइन को दीवार बनाकर संरक्षित किया जा सकता है? वकील ने कोर्ट को बताया कि हम इसके लिए एक वीडियो दिखाना चाहेंगे. कोर्ट ने फिर पूछा कि यह रिटेनिंग वॉल है जो बह गई है? इस पर कोर्ट मे पेश इंजीनियर ने बताया कि यह मानसून से पहले की हैं. यह रेलवे लाइन शहर की तरफ शिफ्ट करनी पड़ेगी.

ASG ने कहा यह पहाड़ियों के शुरू होने से पहले का अंतिम स्टेशन है. वंदे भारत जैसी योजना की परिकल्पना की गई है. उस अतिक्रमण हटाए बिना हमारे पास जगह नहीं है. कोर्ट ने कहा कि हम उन लोगों की बात कर रहे हैं जो आज़ादी से पहले या बाद में दशकों से वहां रह रहे हैं. वरिष्ठ वकील कॉलिन गोंसाल्वेस ने कहा 2022 में ट्रैक पर पानी भर गया. रेलवे ने तुरंत कार्रवाई की और दीवार को बनाए रखना शुरू कर दिया. कोर्ट ने कहा राज्य को यह योजना बनानी होगी कि इन लोगों का पुनर्वास कैसे और कहां किया जाएगा?

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