कालाढूंगी में रिजॉर्ट में हाथी का सड़ा गला शव बरामद होने से राज्य में लगातार किसी न किसी प्रकार हो रही हाथियों की आकस्मिक मौत से पशु प्रेमियों में जहां हैरानी है वहीं वन विभाग मैं हड़कंप मचा हुआ है वही पिछले 20 वर्षों में विभिन्न क्षेत्रों में रेलगाड़ी से अब तक 30 हाथियों की मौत होना भी वन विभाग के लिए चुनौती बनना लाजमी है।
कैंप कॉर्बेट रिजॉर्ट के परिसर में बुधवार को हाथी का सड़ा गला शव मिला। मौत के कारणों का पता नहीं चल सका है। हाथी के दांत सुरक्षित हैं।
रेंजर अमित ग्वासाकोटी ने बताया कि रिजॉर्ट स्वामी सुमन आनंद ने फोन पर सूचना दी कि उनके रिजॉर्ट परिसर में जंगल किनारे हाथी का शव पड़ा है। इस पर वन विभाग की टीम मौके पर पहुंची। हाथी का शव सड़ गल चुका था। अनुमान लगाया जा रहा है कि हाथी की मौत करीब एक महीने पहले हुई होगी। वनकर्मियों की मौजूदगी में डॉक्टरों के पैनल में मौजूद डॉ. आयुष उनियाल, डॉ. हिमांशु पांगती ने हाथी का पोस्टमार्टम किया। उन्होंने बताया कि विसरा जांच के लिए लैब भेज दिया गया है। पोस्टमार्टम रिपोर्ट के बाद ही मौत की असल वजह का पता चल सकेगा। डीएफओ चंद्रशेखर जोशी, डब्ल्यूडब्ल्यूएफ की टीम ने भी घटनास्थल का निरीक्षण किया।
एक महीने पहले रिजॉर्ट में हाथियों ने उत्पात मचाया था
कैंप कॉर्बेट रिजॉर्ट में एक महीने पहले हाथियों के एक झुंड ने उत्पात मचाया था। हाथियों ने रिजॉर्ट की किचन तोड़ दी थी। किचन से कुछ दूरी पर ही हाथी का शव मिला है। बड़ा सवाल कि आखिर परिसर के अंदर हाथी की मौत कैसे हो गई।
रिजॉर्ट मालिक का पक्ष
स्वास्थ्य खराब होने के कारण मैं पिछले 15 दिनों से दिल्ली में अपना इलाज करा रही हूं। एक महीने पहले हाथियों ने मेरे रिजॉर्ट में उत्पात मचाया था, तब से रिजॉर्ट बंद है। हाथी की मौत कैसे हुई, इसकी जानकारी मुझे नहीं है।
-सुमन आनंद, स्वामी, कैंप कॉर्बेट रिसोर्ट
उत्तराखंड में वन क्षेत्रों से गुजरने वाले रेलवे ट्रैक भी हाथियों के लिए काल बनते जा रहे हैं, स्थिति यह है कि उत्तराखंड राज्य बनने के बाद पिछले 20 वर्षों में अब तक राज्य में 23 हाथियों की मौत ट्रेन की चपेट में आने से हो चुकी है, बुधवार को तराई केंद्रीय वन प्रभाग के टांडा एवं पीपलपड़ाव रेंज के मध्य भी ट्रेन की टक्कर से तीन हाथियों की मौत हो गई, एक के बाद एक हो रही हाथियों की मौत से सवाल खड़े होने लगे हैं,
उत्तराखंड में रेलगाड़ी के वन्य क्षेत्र से गुजरने को लेकर समय-समय पर सवाल खड़े होते रहते हैं. लेकिन ऐसी घटनाओं में वन्यजीवों की मौत के बाद आवाजें और भी ज्यादा बुलंद होने लगती हैं, खास तौर पर हाथियों को लेकर रेलवे ट्रैक पर परेशानियां काफी ज्यादा रही हैं, गत 18 अगस्त को रेलगाड़ी आगरा फोर्ट एक्सप्रेस (05055 अप) लालकुआं स्टेशन से सिडकुल हाल्ट से आगे रेलवे माइलस्टोन नंबर 13/2 के पास ट्रैक से गुजर रहे हाथियों के झुंड से टकरा गई। मौके पर मादा हथिनी व उसके बच्चे की मौत हो गई। इससे 4 वर्ष पूर्व लालकुआं नगला रेलवे स्टेशन के बीच सीमैप के सामने रेलगाड़ी की चपेट में आकर टस्कर हाथी की मौत हो गई थी। यही नहीं ओके हादसे में घायल एक हाथी का 15 दिन बाद टांडा के जंगल में शव बरामद हुआ था कुल मिलाकर इस रेल हादसे में तीन हाथियों की दर्दनाक मौत हो गई। इसके अलावा लालकुआं और हल्दी रोड रेलवे स्टेशन के बीच पिछले 10 सालों में 3 हाथियों की ट्रेन की चपेट में आने से मौत हो गई थी। साथ ही पूरे उत्तराखंड में अब तक 23 हाथियों की रेलगाड़ी की चपेट में आकर मौत होने से वन महकमे में हड़कंप मचा हुआ है। विभाग ने इस दिशा में कोई भी ठोस कदम नहीं उठाए हैं। जिसके चलते दिन पर दिन इस तरह की घटनाओं की बढ़ोतरी हो रही है। अगस्त माह में हुई 3 हाथियों की मौत के बाद तराई केंद्रीय वन प्रभाग के प्रभागीय वनाधिकारी का कहना है कि अब वन विभाग हाथियों की बार-बार रेलगाड़ी की टक्कर से मौत होने के मामलों को गंभीरता से लेते हुए त्वरित कार्रवाई अमल में लाएगा। साथ ही रेलवे के अधिकारियों से वार्ता करके ऐसी दुर्घटनाओं को रोकने के लिए ठोस उपाय किए जाएंगे। इसके बाद जिन क्षेत्रों से हाथियों का आवागमन रहता है वहां से रेलगाड़ियों को न्यूनतम स्पीड में चलाने का रेल महकमे ने निर्णय भी लिया, देखना है कि कब तक महकमा इस दिशा में सचेत रहता है।