रक्षाबंधन पर्व को लेकर तमाम पंडितों द्वारा अपनी अपनी राय रखी जा रही है जिसमें बनारस हिंदू विश्वविद्यालय सहित तमाम क्षेत्रों के प्रकांड पंडितों ने 11 अगस्त को ही रक्षाबंधन पर्व मनाना शास्त्र सम्मत बताया है।
“शंका समाधान “
आज 28 जुलाई 2022 के रात्रि 10बजे आचार्य घनश्याम जोशी जी ने मेरे से प्रश्न पूछा है कि “पर्व निर्णय सभा “ने एक पत्र जारी कर आपका नाम भी उसमें उद्धृत किया है जिससे हमें बहुत सन्देह हो रहा है । मैं गुगल मीट के माध्यम से उस मीटिंग में श्रीताराप्रसाददिव्यपंचांग के प्रधान सम्पादक के बतौर सम्मिलित अवश्य हुआ था जिसमें मैंने 11अगस्त को श्रावणी उपाकर्म व रक्षा बन्धन के पक्ष में सभी अकाट्य शास्त्रीय प्रमाणों को रखा तथा कहा था कि अन्तिम दम तक मैं 11 अगस्त 2022 के निर्णय पर अडिग हूँ जिसके शास्त्रीय प्रमाणों को मैंने लिंक एवं वीडियो के द्वारा पूर्व में ही भेज दिया है । बड़ा प्रयास किया था पंचांगकारों को एक मंच पर लाकर पंचांग प्रकाशन से पूर्व एक सहमति बनाने की परन्तु यह सपना सदा -सदा के लिए समाप्त हो गया है ।ध्यान रहे मैं न तो पर्व निर्णय सभा कभी सदस्य था न रहूँगा ।
आपको मेरा निर्णय अच्छा लगता है या हमारे द्वारा किये गये ज्योतिष व पंचांग सम्बन्धी कार्य आपको शास्त्रोचित व हिन्दू पर्व एकता के लिऐ अच्छे लगते हैं तो आप प्रत्येक दशा में 11 तारीख को ही रक्षाबंधन व उपाकर्म करें । कुमाऊं को छोड़कर पूरे देश में भी यह पर्व 11 तारीख को ही मनाया जायेगा । श्री गिरिजा माता की जय ।
आचार्य (डॉ)रमेश चन्द्र जोशी प्रधान सम्पादक श्रीताराप्रसाददिव्य पंचांग-9410167777
वरिष्ठ एवं प्रख्यात ज्योतिषाचार्य पंडित जीवन चंद्र जोशी जी का शास्त्र सम्मत मत भी पढ़िए
🌹रक्षावन्धन एवं श्रावणीउपाकर्म(यज्ञाेपवितधारण)🌹
🌷समस्त सनातनधर्मावलम्वियाें काे निष्कर्ष रूप में सूचित किया जाता है कि ज्याेतिष एवं वेदवेदांग के मूर्धन्य विद्वानाें के द्वारा भी यह स्पष्टरूप में कहा जा रहा है कि 11अगस्त दिन गुरूवार काे काे ही प्रात:काल 10:40 से सायंकाल 5:52 तक निशंकाेच किसी भी दाेष कि परिकल्पना ना करते हुये उपाकर्म मनाना शास्त्र सम्मत है ।मकर के चन्द्रमाँ यानि श्रवण नक्षत्र के चन्द्रमाँ में भद्रा सदैव पालाल में हाेती है ।श्रवण युक्त पूर्णिमा या उत्तराषाढा़, धनिष्ठा के कुछ भागाें से युक्त पूर्णिमा जब भी हाेती है वह पाताल में हाेती है ।पाताल की भद्रा का दाेष पाताललाेक में ही ब्रह्मा जी ने माना है स्वर्ग की भद्रा स्वर्ग के लिये कष्टकारक व मृत्युलाेक की मानवाें के लिये दाेषकारक हाेती है अत: यह शास्त्र प्रमाण से स्पष्ट है।
स्वर्ग भद्रा शुभं कुर्यात पाताले सुखसम्पद:।
मर्त्यलाेके यदा भद्रा सर्वकार्यार्थ विनाशनि।।
वैसे रात्रि में रक्षावन्धन का शास्त्राें में निषेध नही है परन्तु हमारी परम्परा पूर्वजाें से जाे चली आरही है हमारे यहाँ किसी भी शुभकार्य का प्रारम्भ सूर्यास्त के बाद नही किया जाता है।यदि विवाहादि, यज्याेपवित का कर्म रात्रि के समय किया जाता है ताे उसका श्रीगणेश दिन से ही प्रारम्भ हाेजाता है फिर समय का काेई दाेष रात्री का नही रहता ।
यह भी हमारे पूर्वज श्रृषियाें ने एक नियम दिया है कि पहले यज्याेपवित व रक्षासूत्र की प्रतिष्ठा गणेशपूजन, श्रृषि तर्पण के साथ हाेगी तत्पश्चात यज्याेपवित धारण हाेगा फिर रक्षासूत्र बन्धन हाेगा। यह नही कि पहले रक्षासूत्र बाँध लें फिर जनेऊ धारण दूसरे दिन करें। हाँ यदि किसी के घर में अशाैच की स्थिति 11अगस्त काे हाेती है और 12अगस्त काे उसकी निवृत्ति हाेती है उसस्थिति में दूसरे दिन प्रात:काल 07 बजकर 05 मिनट से पूर्व पहले जनेऊ धारण करें फिर रक्षासूत्र बाँधें।
शाैनक आदि श्रृषियाें का कथन है कि श्रवण युक्त पूर्णमासी में दिन में उपाकर्म करना श्रैयस्कर है। यह भी ब्यवस्था दी गई है कि यदि कभी पूर्णिमा ग्रहण से दूषित हाे ताे तब हस्तनक्षत्र युक्त पंचमी तिथि काे यजुर्वेदियाें काे उपाकर्म करना चाहिये।अलग अलग शाखाओं के भेद से अगल अलग मास जैसे मिथुन की पूर्णिमा ,सिंह की पूर्णिमा, या श्रृषिपंचमी में भी उपाकर्म का विधान हमारे मनीषी श्रृषियाें ने दिया है क्याें कि वे यह सब जानते थे भविष्य में कलियुग में यह सब हाे सकता है।
वैसे भी ज्याेतिषवेदांग का नियम है यदि पूर्णिमा दूसरे दिन दाे मुहूर्त से कम हाे ताे पूर्वदिन चतुर्दशी के समापन के बाद पूर्णिमातिथि में यजुर्वेदियाें का उपाकर्म हाेगा।
यदि 12 अगस्त काे पूर्णिमा छ: मुहूर्त से अधिक यानि 4 घंटा 48 मिनट से अधिक हाेती ताे दूसरे दिन ही उपाकर्म हाेता।पर यह इसबार के उपाकर्म में नही है। इसलिये 12 अगस्त काे नही हाे सकता।
हम लाेग चतुर्दशी वाली पूर्णमासी का ब्रत -पूजन ताे विना किसी के कहे करलेते है क्याें कि हमें पता है कि चन्द्रमा जब एकम में आजाता है ताे उसकी पूजा नही की जाती ।ताे इस समय अपना दिमाक प्रतिपदा युक्त पूर्णिमा हेतु उपाकर्म व रक्षासूत्र बन्धन में क्याें लगा रहे है ।
हाँ यह स्पष्ट ग्रन्थकार ने लिखा है “भद्रायां द्वै न कर्तब्यै श्रावणी, फाल्गुनी तथा।
कहने का अभिप्राय श्रावण पूर्णमासी काे रक्षावन्धन आता है व फाल्गुनपूर्णमासी में हाेलिका दहन।अत: ये नही करने चाहिये फिर आगे यह भी लिखा है पृथ्वीलाेक की भद्रा में पृथ्वीलाेक के शुभकर्म प्रारम्भ नही करने चाहिये।वर्ना भद्रादाेष के कारण परिवार, समाज एवं राजकार्याें में बिध्न पैदा हाेंगे।परन्तु 11अगस्त की भद्रा में ताे ऐसा कुछ नही है पाताललाेक की भद्रा है ।
अतः समस्त जनमानस काे शंकाछाेड कर यदि किसी विद्वान की बाताें पर भी शंका हाेती है ताे उसके लिये प्रमाण हमारे शास्त्र है वे किसी जाति, धर्म, या गाेत्र का पक्ष ना लेते हुये समस्त जनमानस के कल्याण के लिये ही लिखे गये है।
अन्तिम निर्णय यही कि 11अगस्त काे सभी लाेग प्रेम व उल्लास पूर्वक 10:40 से लेकर सायंकाल सूर्यास्त से पूर्व 5:50 तक प्रतिष्ठत रक्षासूत्र व यज्याेपवित धारण करें।किसी अफवाह या दवाव में आकर पर्व ना मनायें । मेरे अलावा बडे़-2 मानीषी विद्वानाें ने नेटवर्क के माध्यम से अपने बिचार के साथ शास्त्र प्रमाण प्रस्तुत कर प्रेषित किये है ।हम सब का किसी के प्रति काेई स्वार्थ नही है मात्रउद्देश्य सही निर्णय जन्ता के सामने रखकर शास्त्र की मर्यादा बनाये रखना है।
आप विश्व के समस्त जनमानस काे मेरे व मेरे परिवार की तरफ से पवित्र प्रेम के बन्धन के इस पावन पर्व की हार्दिक शुभकामना व बधाई।🌷
आचार्य जीवन चन्द्र जाेशी -शास्त्री (ज्याेतिषाचार्य)
हल्द्वानी