उत्तराखण्ड

अजब-गजब: उत्तराखंड में मिलीं उड़ने वाली गिलहरियों की एक-दो नहीं बल्कि पांच प्रजातियां, जानिए इनके बारे में हैरान करने वाली बातें

गिलहरी इस धरती के सबसे प्यारे और नटखट जीवों में से एक है। इस जीव को जमीन पर तेजी से भागते, उछल-कूद करते और पेड़ों पर चढ़ते हुए सबने देखा होगा। लेकिन क्या आप किसी उड़ती हुई गिलहरी के बारे में जानते हैं? शायद नहीं जानते होंगे, मगर ये सच है। दुनिया में ऐसी भी गिलहरियां पाई जाती हैं, जो उड़ सकती हैं। हाल ही में उत्तराखंड के जंगलों में ऐसी ही उड़ने वाली गिलहरियां मिली हैं। 

सबसे हैरानी की बात ये है कि इन जंगलों में एक या दो नहीं बल्कि पांच प्रजातियों की उड़ने वाली गिलहरियां मिली हैं। उत्तराखंड वन विभाग के रिसर्च विंग द्वारा की गई स्टडी में इस बात का खुलासा हुआ है। स्टडी में इस बात पर खुलासा हुआ है कि उत्तराखंड में पांच अलग-अलग प्रजातियों की उड़ने वाली गिलहरियां मौजूद हैं। आइये आपको बताते हैं उड़ने वाली इन गिलहरियों के बारे में कुछ हैरान करने वाली बातें… 

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उत्तराखंड वन विभाग में रिसर्च विंग के चीफ कंजरवेटर ऑफ फॉरेस्ट संजीव चतुर्वेदी के मुताबिक उड़ने वाली गिलहरियों पर करीब दो साल तक स्टडी चली है। इस स्टडी का मुख्य उद्देश्य ये पता करना था कि उत्तराखंड में कितने प्रकार की उड़ने वाली गिलहरियां पाई जाती हैं। साथ ही वो कैसे रहती हैं, उन्हें कितना खतरा है, उन्हें बचाने के लिए क्या किया जा सकता है, ऐसी ही कई बातों पर स्टडी हुई है। 

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उत्तराखंड में गिलहरियों की उड़ने वाली जो पांच प्रजातियां मिली हैं, उनका नाम- रेड जायंट, व्हाइट बेलीड, इंडियन जायंट, वूली, स्मॉल कश्मीरी फ्लाइंग स्किवरल है। ये गिलहरियां अलग-अलग इकोसिस्टम में रहती हैं। साथ ही इनके रहने, खान-पान और लंबी छंलाग यानी उड़ान में थोड़ा-थोड़ा बदलाव है। 

संजीव चतुर्वेदी का कहना है कि स्टडी से हम कई तरह की नीतियां और नियम बना सकते हैं ताकि इन सुंदर और दुर्लभ जीवों को बचाया जा सके। चीफ कंजरवेटर ऑफ फॉरेस्ट के मुताबिक दो साल तक चली स्टडी को उत्तराखंड के 6 अलग-अलग जगहों में पूरा किया गया है। ये हैं- उत्तरकाशी, रानीखेत, देवप्रयाग, चकराता और पिथौरागढ़ जिला।  

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बात करें इन गिलहरियों की तो इनके अगले और पिछले पैर के बीच हल्के और पतले मांसपेशियों की झिल्ली जैसी होती है। इस झिल्ली को ये गिलहरियां तब खोलती हैं जब इन्हें एक पेड़ से नीचे कूदना होता या फिर ऊंचाई से छलांग लगानी होती है। सबसे बड़ी बात कि इन झिल्लियों की वजह से गिलहरियां हवा में गोते लगाते हुए अपने लक्ष्य तक पहुंच जाती हैं। 

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