उत्तराखण्ड

नहीं हुई रॉयल्टी की दरें कम, विशेषज्ञों का मानना रॉयल्टी की दरें कम होने पर ही गौला नदी में लौट सकता है पुराना खनन कारोबार…. पढ़ें पूरी खबर “गौला तब और अब”

भाड़ा बढ़ाने एवं रॉयल्टी की दरें कम करने की मांग को लेकर बरेली रोड खनन संघर्ष समिति के बैनर तले खनन व्यवसायियों को अब क्रमिक अनशन करना पड़ रहा है। शासन प्रशासन द्वारा एक ही राज्य के 2 जनपदों में खनन के अलग-अलग नियम बनाए गए हैं। जिसके चलते गौला नदी का खनन कारोबार सिमटता जा रहा है।
स्टोन क्रेशर एसोसिएशन के अध्यक्ष राजेश अग्रवाल का मानना है कि जब तक उत्तराखंड सरकार रॉयल्टी की दरों में कमी नहीं करती है तब तक खनन व्यवसायियों का काम पर लौटना मुश्किल सा लग रहा है क्योंकि जहां एक और खनन व्यवसाई भाड़ा अधिक बढ़वाना चाहते हैं। वही क्रेशर संचालक अधिक पैसे बढ़ाने में नुकसान में आ जा रहा है इसीलिए समझौते की स्थिति नहीं आ पा रही है। उन्होंने कहा कि एक सप्ताह से भी अधिक समय हो गया है उन्होंने अपने क्रेशर बंद करके रखे हैं। अपना कारोबार बंद किसे अच्छा लगता है। उन्होंने मांग की कि राज्य सरकार अभिलंब रॉयल्टी की दरों को कम करें, ताकि गौला नदी से जुड़े संस्थानों में खनन का बाजार पुनः कामयाब हो सके। क्योंकि वर्तमान में बाजपुर और रामनगर ने यहां से खनन का कारोबार छीन कर अपने यहां बना लिया है।
विदित रहे कि हल्द्वानी के आसपास के क्षेत्रों व रुद्रपुर में बाजपुर से बहुत ही कम पैसों में ओवरलोड खनन सामग्री आ रही है। जबकि गौला से जुड़े विभिन्न संस्थानों तथा गौला नदी में खनन सामग्री के अत्यधिक रेट है, जिस वजह से लोग बाजपुर और रामनगर का माल मंगाने लगे हैं। परंतु रेता और बजरी में पहली पसंद गौला नदी ही है लेकिन खनन सामग्री के यहां रेट अधिक होने के चलते अब इस क्षेत्र के लोग दूसरे शहरों का रुख करने लगे हैं। जबकि आज से 10 वर्ष पूर्व तक गौला नदी से जो रेता बजरी निकलता था वह उत्तर प्रदेश, बिहार, दिल्ली, हरियाणा, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, गुजरात के साथ-साथ राजस्थान तक जाता था, धीरे धीरे उत्तर प्रदेश में झांसी और शाहजहांपुर की मंडी डेवलप हुई और उधर पंजाब में भी रेता बजरी का बाजार पनपा, जिसके चलते गौला नदी का खनन कारोबार धीरे-धीरे कम होता चला गया, इस खनन कारोबार को पीछे करने में उत्तराखंड राज्य में लगने वाले विभिन्न टैक्स, उधम सिंह नगर और नैनीताल जिला पुलिस प्रशासन का भी अहम रोल बताया जा रहा है, कई बार उत्तर प्रदेश के विधायक और सांसदों द्वारा की गई शिकायत और पूरे घटनाक्रम से मौजूदा सरकार को अवगत कराने के बावजूद आज तक इस मामले को ठंडे बस्ते में रखा गया। जिसका परिणाम यह हुआ कि लालकुआं क्षेत्र के अधिकांश ट्रांसपोर्ट खत्म हो गए, और बचे कुचे ट्रांसपोर्ट खत्म होने की स्थिति में पहुंच गए हैं। यही हाल खनन व्यवसायियों का भी है बदलते समय के साथ खनन व्यवसायियों का जहां मुनाफा कम हो गया। वहीं संबंधित विभाग द्वारा केवल गौला नदी के लिए अत्यधिक नियम लागू कर देने के चलते खनन व्यवसाई भी आज अत्यधिक हताश है।

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