लालकुआं। उत्तराखंड के प्रसिद्ध लोक गायक प्रहलाद मेहरा का हृदय गति रुकने से निधन हो गया, उनके निधन का समाचार सुनकर जहां परिवार में कोहराम मच गया, वहीं क्षेत्र में शोक की लहर व्याप्त है, दिवंगत प्रहलाद मेहरा का अंतिम संस्कार (कल) गुरुवार को किया जाएगा।
लोक गायक प्रहलाद मेहरा को बुधवार की दोपहर हल्द्वानी स्थित आवास में अचानक सीने में तेज दर्द की शिकायत हुई, जिन्हें निजी चिकित्सालय में ले जाया गया, जहां चिकित्सकों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया, इसके बाद परिजन उनके पार्थिव शरीर को लेकर बिंदुखत्ता स्थित घर में पहुंचे तो ग्रामीण क्षेत्र में उनके निधन की खबर से माहौल शोकाकुल हो गया।
विदित रहे कि उत्तराखंड के वरिष्ठ लोक गायक प्रहलाद सिंह मेहरा का जन्म 04 जनवरी 1971 को पिथौरागढ़ जिले के मुनस्यारी तहसील चामी भेंसकोट में एक राजपूत परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम हेम सिंह है वह शिक्षक रह चुके हैं, उनकी माता का नाम लाली देवी है।
80 के दशक में पिथौरागढ़ के एक बच्चे ने इजा, आमा और दीदियों को घर में गाने गुनगुनाते सुनकर गाना शुरू किया. फिर रेडियो और टेप रिकॉर्डर पर गीत सुने तो उसका जुनून और परवान चढ़ा. गोपाल बाबू गोस्वामी के गीत सुने तो ठान लिया कि गायक ही बनना है।
बिना पारंपरिक शिक्षा लिए प्रह्लाद मेहरा ने बिंदुखत्ता को अपना आशियाना बनाया और यही से 1989 में गायन के क्षेत्र में कदम रख लिया। स्टेज पर पहला अनुभव खट्टा था: स्टेज पर जब पहली बार गाना गाया तो वो अनुभव बहुत अच्छा नहीं था। वहां मंच पर लड़ाई हो गई थी। प्रह्लाद मेहरा को वहां से जाना पड़ा था।
रामलीला और झोड़े-चांचड़ी से प्रह्लाद मेहरा ने सार्वजनिक रूप में गीत गाने शुरू किए. मेहरा जी के पिता शिक्षा विभाग में थे। पिता साथ बिठाकर गाने गवाते थे। धीरे-धीरे लोग उनकी आवाज को पसंद करने लगे।
सिने अवॉर्ड में बेस्ट सिंगर का इनाम पाने वाले प्रह्लाद मेहरा को हीरा सिंह राणा के कद का गायक माना जाता है। प्रह्लाद मेहरा का जन्म 4 जनवरी 1971 को उत्तराखंड के सीमांत जनपद पिथौरागढ़ के ग्राम चामी भैंसकोट भरोडा के मुनस्यारी विकास खंड में हुआ है। माता गृहणी थी। पिता शिक्षक थे। प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त करने के बाद वह नैनीताल जिले के बिन्दुखत्ता गांव पहुंच गए।
यहां उन्होंने 1987 में सांस्कृतिक मंच तैयार किया और संगीत के क्षेत्र में काम करने का बहुत मौका मिला। कई सांस्कृतिक दलों के साथ काम किया। धीरे-धीरे उनकी पहचान उत्तराखंड सहित अन्य जगहों पर होने लगी।
प्रहलाद मेहरा के भाई मनोहर मेहरा ने बताया कि उत्तराखंड की संस्कृति और सभ्यता को बचाने के लिए प्रहलाद मेहरा ने कई गीत गाए हैं, जिससे युवा पीढ़ी संगीत के माध्यम से अपनी संस्कृति को बचाने के लिए आगे आ सके। उन्होंने बताया कि वर्ष 2000 में कई एल्बम में उन्हें गाने का मौका मिला। वहीं से उनकी पहचान बनी। और देखते ही देखते वह पूरे उत्तराखंड में छा गए।
यहां बिंदुखत्ता के संजय नगर में देर शाम प्रहलाद मेहरा का पार्थिव शरीर लाया गया, जहां ग्रामीणों की भारी भीड़ एकत्र हो गई, उक्त घटना को सुनकर जहां उनके परिवार में कोहराम मच गया, वहीं क्षेत्र में शोक की लहर व्याप्त है। भारी संख्या में ग्रामीण और जनप्रतिनिधि उनके घर पर एकत्र हो गए, प्रहलाद मेहरा के तीन बेटे हैं, जो कि समाज सेवा के साथ-साथ स्थानीय स्तर पर स्वरोजगार से जुड़े हुए हैं, उनके माता-पिता और पत्नी का उक्त खबर को सुनकर रो-रो कर बुरा हाल है। उनकी शव यात्रा गुरुवार की प्रातः निकाल जाएगी तथा चित्रशिला घाट रानीबाग में अंतिम संस्कार किया जाएगा।
फोटो परिचय- प्रहलाद मेहरा के शव के समक्ष बिलखती उनकी पत्नी व परिजन
फाइल फोटो- प्रहलाद मेहरा