उत्तराखण्ड

रक्षाबंधन पर्व को लेकर उत्तराखंड के प्रमुख ज्योतिषाचार्यों का एकमत……. इस दिन मनाया जाएगा रक्षाबंधन पर्व….. पढ़ें विस्तृत खबर और ज्योतिषों के शास्त्र सम्मत तर्क….

उत्तराखंड में रक्षाबंधन पर्व को लेकर ज्योतिष द्वारा जो तर्क दिया जा रहा है उससे असमंजस की स्थिति बनी हुई है कुछ ज्योतिषाचार्य 11 अगस्त को तो कुछ 12 अगस्त को रक्षाबंधन पर्व मनाने की अपील कर रहे हैं परंतु उत्तराखंड के प्रमुख ज्योतिषाचार्य रक्षाबंधन पर्व को लेकर शास्त्र सम्मत जो तर्क दे रहे हैं कृपया उनका स्मरण करें……

प्रमुख ज्योतिषाचार्य पंडित त्रिभुवन उप्रेती जी द्वारा रक्षाबंधन पर्व को लेकर दिए गए शास्त्र सम्मत तर्क पढ़िए

🚩🚩सभी मित्रजनों के सूचनार्थ निवेदन —- आप सभी मित्रजनों सुधीजनो यजमान बन्धुओं से निवेदन है कि 🕉️ श्री रक्षाबंधन,उपाकर्म, पूर्णिमा व्रत,जनेऊ धारण, बग्वाल मेला , दिनांक 11 अगस्त 2022 बृहस्पतिवार को होंगे🕉️ दिनांक 12 अगस्त 2022 शुक्रवार को केवल स्नान दान पूर्णिमा, गायत्री जयंती, संस्कृत दिवस होगा, इस दिन पूर्णिमा केवल सुबह 7=00 बजे तक ही है।।। अतः सुधीजन ध्यान दें तथा अधिक से अधिक शेयर कर पुण्य लाभ अर्जित करें।। रक्षाबंधन में कोई विवाद नहीं है केवल भ्रम फैलाया जा रहा है।। 11 तारीख को सुवह 10=30 से शाम 6=30 तक आप नि: संकोच रक्षाबंधन उपाकर्म मना सकते हैं ।। भद्रा पाताल लोक की होने से किसी प्रकार का दोष नहीं होता।। ।। रक्षाबंधन की हार्दिक शुभकामनाएं व बधाई।।🕉️आपका पंडित त्रिभुवन उप्रेती ज्योतिष कार्यालय नया बाजार हल्दूचौड हल्द्वानी नैनीताल उत्तराखंड,9410143469,,🙏🙏🙏🙏🙏

उत्तराखंड के प्रमुख ज्योतिषाचार्य बेरीनाग निवासी पंडित गंगा प्रसाद जोशी जी का क्या कथन है पढ़िए

(११ तारीख ही श्रावणी उपाकर्म की -)
( शास्त्र सम्मत तिधि=)

सर्वप्रथम ११ अगस्त के पक्ष में प्रमाण प्रस्तुत करने के साँथ-२ =
१२ अगस्त की पूर्णिमा तिथि को उपाकर्म/रक्षाबंधन के लिए शास्त्र कैसे निषिद्ध मानते हैं-
🌹इन विन्दुओं पर विचार सबसे महत्वपूर्ण है।🌹=

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विन्दु(१)=
१२ अगस्त को पूर्णिमा की त्रि मुहूर्त न्यूनता=

सामान्य रुपेण निबन्धकारों ने/ मीमांसकों ने किसी भी तिथि की ग्राह्यता के लिए यह प्रमुख शर्त रखी कि-
कोई भी तिथि किसी भी पर्व के लिए तभी उदय व्यापिनी ग्राह्य होती है –
जब उस तिथि का मान- सूर्योदय के उपरान्त कम से कम ३ मुहूर्त हो ।
अन्यथा वह तिथि ग्राह्य नहीं होगी।
(प़ुरूषार्थ चिंतामणि कार ने इसे २ मुहूर्त तक माना है।)-🌹”यदा तूत्तरत्र मुहूर्त द्वय(त्रय) मध्ये किंचित न्यूना पौर्णमासी तदापराह्णे सर्वथा तदभावात् ..प्रदोषयामेऽनुष्ठानम्” 🌹

अर्थात् दूसरे दिन पूर्णिमा ३ मुहूर्त से कम हो तो- वह तिथि साकल्यापादिता नहीं होने से पूर्व दिन यह पर्व करणीय है।

ध्यातव्य है- ” १२ अगस्त को पूर्णिमा ३ क्या २ मुहूर्त से भी कम है अतः इस पर्व हेतु निषिद्ध सिद्ध होती है✖️✖️”


(२)= लगभग सात बजे के बाद भाद्र कृष्ण प्रतिपदा=
🌹” इदं प्रतिपद्युतायां न कार्यम्”🌹
निर्णयामृत में स्पष्ट कहा गया=
कि .- यह पर्व प्रतिपदा में निषिद्ध है।
उक्त दिन लगभग ७ बजे बाद प्रतिपदा लग रही है जो कि इस हेतु निषिद्ध काल है।

(और मान भी लो तो लगभग ७ बजे तक उपाकर्म कैसे संभव होगा यह भी मुख्य विचारणीय विन्दु है।)


बिन्दु(३)=
उदय व्यापिनी तिथि को परिभाषित करने वाला अस्पष्ट वाक्य=

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निर्णय सिन्धु में गर्ग जी लिखते हैं- कि=
🌹”पर्वण्यौदयिके कुर्यु: श्रावणे तैत्तिरीयका:🌹=

अर्थात उदय व्यापिनी पूर्णिमा में श्रावणी कर्म होना चाहिये-
लेकिन-

ये उदय व्यापिनी तिथि किसे माना जाता है-
इसे स्पष्ट करते हुवे गर्ग जी ने आगे लिखा है- कि=
🌹”श्रावणी पौर्णमासी तु संगवात् परतो यदि। तदैवौदयिकी ग्राह्या नान्यदौदयिकी भवेत्”🌹

यहीं नहीं-
शिङ्गा भट्टीय और काला दर्श ग्रन्थ में भी इसे सिद्ध करते हुवे लिखा है- कि=
🌹”श्रवणः श्रावणं पर्व संगवस्पृग्यदा भवेत् तदैवौदयिकं कार्य नान्यदौदयिकं भवेत्”🌹

अर्थात=
यदि पूर्णिमा संगव काल से अधिक हो -तो ही उदय कालिक ग्राह्य मानी जाती है-
अन्यथा कदापि नहीं।

ध्यातव्य हो =१२ अगस्त को पूर्णिमा संगव काल से बहुत कम है।

विन्दु (४)=
११ अगस्त को उ० षा० व श्रवण की युति का भ्रम=

माना जा रहा है कि पूर्व दिन श्रवण नक्षत्र उ० षा० से विद्ध है-
तो इसका स्पष्टीकरण इस प्रकार है-

(क)=सर्वप्रथम यजुर्वेदियों के लिए श्रवण नक्षत्र की बाध्यता शास्त्रों में नहीं है –
यह ऋग्वेदियों का मुख्य काल है- यजुर्वेदियों का मुख्य काल पूर्णिमा तिथि है=
न कि श्रवण नक्षत्र।

(ख)= और इस वाक्य को निर्णय सिन्धु कार ने निर्मूल घोषित किया है।

(ग).=और नक्षत्र की विद्धता (वेध) वहीं मानी जाती है जहाँ विद्ध नक्षत्र की व्याप्ति ३ मुहूर्त से अधिक हो-

🌹”मुहूर्तत्रयान्न्यूनाया बेधकत्वं वेध्यत्वं च नास्ति”🌹 (पुरुषार्थ चि०)

🌹वेध्यापि त्रिमुहूर्तैव न न्यूना वेधमर्हति🌹(का. मा.)

और- यहाँ उ० षा० नक्षत्र २ मुहूर्त् भी नहीं है। अर्थात वेध नहीं माना जायेगा।


विन्दु(५)=
अब बात भद्रा पर करते हैं=

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🌹”कहा गया- भद्रायां न कर्तव्ये श्रावणी फाल्गुनी तथा”🌹

इस पर धर्मसिन्धु कहता है-
🌹” उदये त्रि मुहूर्त न्यूनत्वे पूर्वेद्युः भद्रा रहिते प्रदोषादिकाले कार्यम्”🌹

अर्थात धर्मसिंधु कहता है-
यदि दूसरे दिन पूर्णिमा ३ मुहूर्त से कम हो तो दूसरे दिन उपाकर्म होगा ही नहीं =
ऐसे में पहले दिन प्रदोष में निशीथ पूर्व यह कार्य करें।

और-
वैसे भी ऐसी परिस्थिति में मुहूर्त ग्रन्थों ने निर्देश किया है- कि . –
ऐसे काल में भद्रा का मुख छोड़कर पुच्छ काल में कर्म करें।
🌹”मुखमात्रं परित्यजेत्”🌹
और यदि नहीं?

तो इसी वर्ष-
सम्पूर्ण भारत में भद्रा में फाल्गुनी अर्थात होलिका दहन कैसे हुवा?

(और मैं स्पष्ट करना चाहता हूँ –
कि यदि परिस्थितिवश ये ११ अगस्त वाली पूर्णिमा दूसरे दिन न होकर ११ अगस्त को ही अल्प चतुर्दशी के साँथ क्षय होकर अगले दिन सूर्योदय से पूर्व समाप्त हो जाती तो फिर १२ अगस्त वाले क्या करते?
ऐसी परिस्थिति में भद्रा कहाँ जाती। भद्रा का वे क्या करते। )

निष्कर्ष=
ऐसे और भी कई प्रमाण हैं।
लेकिन=
🌹निष्कर्ष रुप में यही सिद्ध हाेता है कि-
MAIN=
यदि- निर्णय सिन्धु, धर्म सिन्धु, निर्णयामृत, पुरुषार्थ चिंतामणि, काल माधव, शिंगा भट्टीय जैसे पवित्र ग्रन्थों का और गर्ग जैसे ऋषियों का सनातन धर्म में कोई महत्व या औचित्य है तो उपाकर्म ११ को ही सिद्ध होता है।

हाँ यदि ये ग्रन्थ महत्वहीन हैं तो फिर कभी भी….जब मर्जी….🌹

सादर निवेदित….
ज्योतिषाचार्य – पं गंगा प्रसाद जोशी
बेरीनाग

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