अंतरराष्ट्रीय

आखिर चीन अरुणाचल प्रदेश के गांवों, नदियों व अन्य स्थानों के नाम क्यों बदल रहा है ?

चीन ने इन नामों की सूची अपने नए ‘लैंड बॉर्डर क़ानून’ के तहत जारी किया है. यह नया क़ानून एक जनवरी 2022 से प्रभाव में आ गया है. इस क़ानून को लेकर भारत ने पहले ही चिंता जताई थी।
चीन के विदेश मंत्रालय ने बीते गुरुवार (30 दिसंबर) को भारतीय राज्य अरुणाचल प्रदेश की 15 जगहों के नाम बदलते हुए इसके ‘मानकीकृत’ नाम जारी किए थे.

इन नामों को चीन अब अपने आधिकारिक दस्तावेज़ों और नक़्शों में इस्तेमाल करेगा क्योंकि चीन अरुणाचल प्रदेश को ‘दक्षिणी तिब्बत’ मानता है.

भारत ने चीन के इस क़दम की निंदा की है और कहा है कि ‘नाम ईजाद करके रख देने से’ ज़मीन पर तथ्य नहीं बदलेंगे और ‘अरुणाचल प्रदेश हमेशा से भारत का अभिन्न अंग रहा है और आगे भी हमेशा रहेगा.’

चीन ने इन नामों की सूची अपने नए ‘लैंड बॉर्डर क़ानून’ के तहत जारी किया है. यह नया क़ानून एक जनवरी 2022 से प्रभाव में आ गया है, जिसको लेकर भारत ने चिंता जताई थी.

चीनी कम्युनिस्ट पार्टी का मुखपत्र माने जाने वाला अंग्रेज़ी दैनिक ग्लोबल टाइम्स ने गुरुवार को इससे जुड़ी ख़बर प्रकाशित की थी.
इसमें कहा गया था कि चीन के नागरिक मामलों के मंत्रालय ने बुधवार को घोषणा की है कि उसने जांगनान (अरुणाचल प्रदेश का चीनी नाम) के 15 स्थानों के नामों को चीनी, तिब्बती और रोमन में जारी किया है.

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चीन का क्या है उद्देश्य?

भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने इस ख़बर पर बयान देते हुए गुरुवार को कहा था कि, ”हमने इसे देखा है. ये पहली दफ़ा नहीं है, जब चीन ने अरुणाचल प्रदेश का नाम बदलने की कोशिश की है. चीन अप्रैल 2017 में भी ऐसा ही किया था.”

साल 2017 में चीनी प्रशासन ने पहली बार अरुणाचल प्रदेश के छह ‘आधिकारिक’ नाम जारी किए थे. उस समय इस क़दम को दलाई लामा के राज्य के दौरे पर चीन की एक विरोध प्रतिक्रिया के तौर पर देखा गया था.

हालांकि, नई सूची पिछली बार से लंबी है और इसमें 15 जगहों के नाम हैं, जिनमें आठ शहर, चार पहाड़, दो नदी और एक पहाड़ी दर्रा शामिल है. इसमें अरुणाचल के 11 ज़िले शामिल हैं, जिनमें पश्चिम में तवांग से लेकर पूर्व में अंजॉ तक शामिल है.

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चीन अरुणाचल प्रदेश के 90,000 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र को अपना बताता है.

इन नामों को जारी करने के बाद सभी आधिकारिक चीनी नक़्शों में इन जगहों को उन्हीं नाम से दर्शाया जाएगा. हालांकि यह एक प्रतीकात्मक रुख़ है और इससे ज़मीन पर कोई असर नहीं पड़ने वाला है लेकिन यह क्षेत्रीय विवाद में एक व्यापक नए चीनी दृष्टिकोण का संकेत देता है.

चाइनीज़ एकेडमी ऑफ़ सोशल साइंसेज़ में सीमा मामलों के चीनी विशेषज्ञ चांग यंगपंग ने मीडिया से इस मुद्दे पर कहा है कि ‘देश ने राष्ट्रीय संप्रभुता को सुरक्षित रखने के लिए यह महत्वपूर्ण क़दम उठाया है जो राष्ट्रीय सुरक्षा को बेहतर करने और क्षेत्रीय तनाव के बीच क़ानूनी स्तर पर सीमा संबंधित मामलों में भी महत्वपूर्ण है, इसमें भारत के साथ टकराव भी शामिल है.’

इन सब बातों से यह साफ़ है कि चीन ने एक बार फिर भारतीय क्षेत्र पर एकतरफ़ा दावे को रेखांकित करने के लिए ये प्रयास किया है. अरुणाचल प्रदेश के स्थानों को चीनी नाम देना उसी प्रयास का एक हिस्सा है.

नया क़ानून क्या है?
भारत के साथ वास्तविक नियंत्रण रेखा पर गतिरोध के बीच मार्च 2021 में चीन ने नए सीमा क़ानून बनाया था जो एक जनवरी 2022 से प्रभाव में आ गया है.

इस क़ानून में आम नागरिक और सैन्य प्राधिकरणों को ‘राष्ट्रीय संप्रभुता की सुरक्षा करने के लिए’ कई ज़िम्मेदारियां दी गई हैं.

इस क़ानून में सात अध्यायों में 62 अनुच्छेद हैं, जिनमें सीमा रेखांकन से लेकर प्रवासन से सीमा सुरक्षा और सीमा प्रबंध और व्यापार शामिल है. नए नाम को जारी करना सातवें अनुच्छेद से जुड़ा हुआ है, जिसमें सरकार के सभी स्तरों पर सीमा शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए कहा गया है.

अनुच्छेद 22 में चीनी सेना को सैन्य अभ्यास करने को कहा गया है ताकि किसी भी ‘आक्रमण, अतिक्रमण और उकसावे’ को ‘दृढ़ता से रोका जा सके और उसका मुक़ाबला किया जा सके.’

भारत-चीन सीमा विवाद पर कितना असर?
अंग्रेज़ी अख़बार ‘द हिंदू’ लिखता है कि नई दिल्ली की नज़र में चीन के नए सीमा क़ानून का उद्देश्य 2020 में चीनी सेना के वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर किए गए उल्लंघन को एक क़ानूनी जामा पहनाना है.

साल 2017 में चीन ने सीमा पर गांवों के निर्माण की योजना तैयार की थी जिसके तहत चीन ने भारत, भूटान और नेपाल के सीमाई क्षेत्रों में ‘पहली पंक्ति और दूसरी पंक्ति’ के 628 गांव बसाए थे. इनमें उन्हें रहने के लिए भी भेज रहा है, जो अधिकतर चरवाहे हैं.

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नवंबर 2021 में सैटेलाइट तस्वीरों से पता चला था कि चीन ने 60 नई इमारतें बनाई हैं, जिन्हें भारत अरुणाचल प्रदेश का हिस्सा बताता है. यह इमारतें 2020 के आख़िर में बसाए गए गांव से पूर्व में 100 किलोमीटर दूर हैं.

1959 से यह क्षेत्र चीन के क़ब्ज़े में है और चीनी सेना पहले भी यहां पर अपनी इमारतें बनाती रही हैं लेकिन नागरिकों के लिए निर्माण इसलिए किया जा रहा है ताकि चीन अपने दावे को और मज़बूती से पेश कर सके. हालांकि इस क्षेत्र पर विवाद है और दोनों पक्ष इस पर चर्चा करते रहे हैं.

अक्तूबर 2021 में भारत ने नए क़ानून को लेकर चिंता जताई थी और कहा था कि ‘चीन के क़ानून लाने के एकतरफ़ा फ़ैसले का सीमा प्रबंधन पर हमारी मौजूदा द्विपक्षीय व्यवस्थाओं पर प्रभाव पड़ सकता है, हमारे लिए यह चिंता का विषय है.’

अरुणाचल प्रदेश पर चीन का दावा

अरुणाचल प्रदेश को लेकर चीन पहले भी लगातार दावे करता रहा है और भारत हर बार उसका सख़्ती से खंडन करता रहा है.

चीन अरुणाचल प्रदेश को अपनी ज़मीन बताता है और उसे दक्षिण तिब्बत कहता है.

अपने दावे को मज़बूती देने के इरादे से वो अरुणाचल प्रदेश में भारत के वरिष्ठ नेताओं और अधिकारियों के दौरे के समय अपनी आपत्ति प्रकट करता रहता है.

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उसने अक्तूबर 2021 में उप राष्ट्रपति वेंकैया नायडू के दौरे पर आपत्ति जताते हुए कहा था कि भारत ऐसा कोई काम न करे जिससे सीमा विवाद का विस्तार हो.

चीन की इस आपत्ति पर भारत ने कहा था कि अरुणाचल प्रदेश में भारतीय नेताओं के दौरे पर आपत्ति का कोई तर्क नहीं है.

इससे पहले चीन ने 2019 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह के अरुणाचल जाने पर भी विरोध जताया था. 2020 में गृह मंत्री अमित शाह के अरुणाचल जाने पर भी चीन ने आपत्ति जताई थी.

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