उत्तराखण्ड

उत्तराखंड हाईकोर्ट का ऐतिहासिक फैसला:- नाबालिग बच्चे को सक्षम मां से भरण पोषण के दावे का अधिकार…………… हाईकोर्ट ने दूसरे हाईकोर्ट के पुराने फैसले को पलटा……………..

नैनीताल। उच्च न्यायालय नैनीताल ने कहा कि नाबालिग बच्चे को सीआरपीसी की धारा-125 के तहत मां से भी भरण पोषण का दावा करने का अधिकार है, बशर्ते मां सक्षम हो। कोर्ट ने सीआरपीसी की धार- 125 के तहत व्यक्ति की परिभाषा पर भ्रम को दूर करते हुए कहा कि प्रविधानों को बदल दिया गया है। धारा-125 में किसी भी “व्यक्ति” के उपयोग में माता और पिता दोनों शामिल हैं। इसके साथ ही कोर्ट ने परिवार अदालत के 2013 के आदेश को चुनौती देने वाली अंशू गुप्ता की याचिका खारिज कर दी, जिसमें उन्हें अपने बेटे को भरण पोषण के रूप में प्रति माह दो हजार देने का आदेश पारित किया गया था।
अंशू ने ऊधम सिंह नगर जिले की परिवार अदालत के फैसले को इस आधार पर चुनौती दी थी कि धारा 125 के तहत नाबालिग बच्चों के भरण पोषण का कर्तव्य केवल पिता का है, मां का नहीं। सरकारी शिक्षिका गुप्ता ने 1999 में ऊधम सिंह नगर निवासी नाथू लाल से शादी की और उनको एक बेटा हुआ। वर्ष 2006 में मतभेद के कारण विवाह टूट गया। शिक्षिका ने कोर्ट को बताया कि नाथू लाल से तलाक के बाद उन्होंने बाबू लाल से विवाह किया और उससे उनका एक बेटा है। हालांकि बाबू लाल की एक दुर्घटना में मृत्यु हो गई। इससे उन्हें बेटे और ससुराल वालों का भरण पोषण करना पड़ रहा है।
दोनों पक्षों को सुनने के बाद न्यायाधीश न्यायमूर्ति पंकज पुरोहित की एकलपीठ ने कहा कि यदि माता पिता के पास पर्याप्त साधन हैं तो उस बच्चे के भरण पोषण के लिए दोनों को जिम्मेदार ठहराया जाएगा। सीआरपीसी की धारा-125 साफ
कहती है कि पर्याप्त साधन वाला व व्यक्ति नाबालिग बच्चे के भरण पोषण के लिए उत्तरदायी होगा। व कोर्ट ने कहा कि 21 वीं शताब्दी में महिलाओं की शैक्षिक व आर्थिक स्थिति सुधरी है। अधिकांश महिलाएं शिक्षित व कार्यरत हैं। कोर्ट ने के परिवार न्यायाधीश ऊधम सिंह नगर के आदेश को बरकरार रखा। परिवार अदालत में बताया गया था कि बच्चे त के पिता की वित्तीय हालत ठीक नहीं है। पिता बच्चे को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा, पालन-पोषण में असमर्थ हैं।
वहीं, बच्चे की मां की ओर से परिवार अदालत के आदेश को हाई कोर्ट में यह कहते हुए चुनौती दी गई। कि नाबालिग बच्चों के भरण पोषण का कर्तव्य पिता का है, मां का नहीं। इस संबंध में हरियाणा हाई कोर्ट के एक निर्णय का जिक्र भी किया। एकलपीठ ने इस तर्क को खारिज करते हुए कहा कि यह मिसाल उस समय की है जब महिलाएं अशिक्षित व बेरोजगार थीं। सरकारी शिक्षिका होने के नाते याचिकाकर्ता मां को कम से कम एक लाख वेतन मिलता है और उसके पास बच्चे के भरण पोषण का पूरा साधन है।

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