उत्तराखण्ड

चमत्कार:- पर्वतीय क्षेत्रों में होने वाले औषधीय घिंगारू फल तराई भाबर में उगा, हुई पहली फसल…………. अब गौला नदी के किनारे उगाकर किया जाएगा यह महत्वपूर्ण कार्य…………..

लालकुआं। विशुद्ध रूप से पर्वतीय क्षेत्रों में 1200 मीटर से 1800 मीटर की ऊंचाई पर उगने वाली वनस्पति घिंघारू तराई क्षेत्र के लालकुआं में फल फूल रही है, ये एक चमत्कार जैसा है, दरअसल वन अनुसंधान केन्द्र लालकुआं में विगत दो वर्ष पूर्व एक जन स्वास्थ्य वाटिका बनाई गई, जिससे विभिन्न प्रकार के औषधि प्रजातियों को रोपित किया गया, इन प्रजातियों में पर्वतीय इलाकों में उगने वाले घिंघारू को भी रोपित कर दिया, वाटिका का लालन-पालन ठीक से किया गया, जिसका परिणाम यह है कि घिंघारू पर फल लग कर अब पक रहे हैं, वन अनुसंधान केन्द्र के वन क्षेत्राधिकारी मदन सिंह बिष्ट जिनके द्वारा यह गार्डन बनाया गया, का कहना है कि चूंकि इस पौधे का प्राकृतिक वास स्थल पहाड़ी इलाका है, परन्तु तराई भाभर में लगाने पर ये बढ़िया चल रहा है, दो वर्ष में फल आकर पकना ये नयी बात है, मदन सिंह बिष्ट ने बताया कि घिंघारू के फल औषधि गुणों से भरपूर हैं, हृदय रोगियों के लिए इसका फल रामबाण है, इसके अलावा खूनी पेचिश, मधुमेह में भी लाभदायक है,इसके तने की लकड़ी की लाठी बहुत मजबूत होती है, कृषि यंत्र बनाने में भी उपयोगी है, घिंघारू बहुत अच्छा सौयल बाइंडर है जो भूक्षरण को रोकने में मददगार है, मदन सिंह बिष्ट ने यह भी बताया कि इसके बीज से पौधे तैयार कर नदियों के कटाव क्षेत्रों में रोपण हेतु भेजे जायेंगे।


वन क्षेत्राधिकारी मदन बिष्ट ने बताया कि गौला नदी से हो रहे भू-कटाव को देखते हुए यह पौधे गोला रेंज को भी नदी के किनारे लगाने के लिए दिए जाएंगे। उन्होंने बताया कि घिगारू के पेड़ पहली बार इस क्षेत्र में सक्सेस हुए हैं, पहली बार 10 पौधे लगाए गए थे जो कि अब बड़े हो गए हैं, इस बार 200 पौध लगाई जा रही है, धीरे-धीरे इसे और बढ़ाया जाएगा।
फोटो परिचय- लालकुआं वन अनुसंधान केंद्र में लगाए गए घिंगारु के पौधे पर आए फल

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